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बैगन की खेती

बैंगन की खेती की संपूर्ण जानकारी

बैंगन की खेती की संपूर्ण जानकारी

दोस्तों आज हम बात करेंगे बैगन या बैंगन की खेती की, किसानों के लिए बैगन की खेती (Baigan ki kheti - Brinjal farming information in hindi) करना बहुत मुनाफा पहुंचाता है। 

बैगन की खेती से किसानों को बहुत तरह के लाभ पहुंचते हैं। क्योंकि बैगन की खेती करने से किसानों को करीब प्रति हेक्टर के हिसाब से 120 क्विंटल की पैदावार की प्राप्ति होती है। 

इन आंकड़ों के मुताबिक आप किसानों की कमाई का अनुमान लगा सकते हैं। बरसात के सीजन में बैगन की खेती में बहुत ज्यादा उत्पादकता होती है। बैगन की खेती से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक  बातों को जानने के लिए हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बनें रहे।

बैगन की खेती करने का मौसम :

बैगन की बुवाई खरीफ के मौसम में की जाती है। वैसे तो किसान खरीफ के सीजन में विभिन्न प्रकार की फसलों की बुवाई करते हैं। जैसे:  ज्‍वार, मक्का, सोयाबीन इत्यादि। 

परंतु बैगन की खेती करने से बेहद ही मुनाफा पहुंचता है। बैगन की फसल की बुवाई किसान वर्षा कालीन के आरंभ में ही कर देते हैं। क्‍यांरियां थोड़ी थोड़ी दूर पर तैयार की जाती है। 

किसान 1 हेक्टेयर भूमि पर 20 से 25 क्‍यारियां लगाते हैं। भूमि में क्यारियों को लगाने से पहले उच्च प्रकार से खाद का चयन कर लेना फायदेमंद होता है।

बैगन की फसल की रोपाई का सही समय :

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार बैंगन के पौधे तैयार होने में लगभग 30 से 40 दिन का समय लेते हैं। पौधों में बैगन की पत्तियां नजर आने तथा पौधों की लंबाई लगभग 14 से 15 सेंटीमीटर हो जाने पर रोपाई का कार्य शुरू कर देना चाहिए। 

किसान बैगन की फसल की रोपाई का सही समय जुलाई का निश्चित करते हैं। ध्यान रखने योग्य बात : बैगन की फसल रोपाई के दौरान आपस में पौधों की दूरी लगभग 1 सेंटीमीटर से 2 सेंटीमीटर रखना उचित होता है। 

किसानों के अनुसार हर एकड़ पर लगभग 7000 से लेकर 8000 पौधों की रोपाई की जा सकती है। किसान बैगन की फसल की उत्पादकता 120 क्विंटल तक प्राप्त करते हैं। 

बैगन की कुछ बहुत ही उपयोगी प्रजातियां हैं, जो इस प्रकार है : पूसा पर्पल, ग्रांउड पूसा, अनमोल आदि प्रजातियां की बुवाई किसान करते हैं।

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बैगन की फसल के लिए उपयुक्त मिट्टी का चयन:

बैगन की फसल की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए किसान हमेशा दोमट मिट्टी का ही चयन करते हैं। बलुई और दोमट दोनों प्रकार की मिट्टियां बैगन की फसल के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं। 

बैगन की फसल की पैदावार को बढ़ाने के लिए  कार्बनिक पदार्थ से निर्मित मिट्टी का भी चयन किया जाता है। खेत रोपण करते वक्त इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि खेतों में जल निकास की व्यवस्था को सही ढंग से बनाए रखना चाहिए। 

क्योंकि बैगन की फसल बरसात के मौसम में लगाई जाती है, ऐसे में जल एकत्रित हो जाने से फसल खराब होने का भय होता है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार बैगन की फसल के लिए सबसे अच्छा मिट्टी का पीएच करीब 5 से 6 अच्छा होता है।

बैंगन की फसल के लिए खाद और उर्वरक की उपयोगिता:

बैगन की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए कुछ चीजों को ध्यान में रखना बहुत ही ज्यादा उपयोगी है। जिससे आप बैंगन की फसल की ज्यादा से ज्यादा उत्पादकता को प्राप्त कर सकेंगे। 

खेतों में आपको लगभग 1 हेक्टेयर में 130 और 150 किलोग्राम नाइट्रोजन का इस्तेमाल करना चाहिए। वहीं दूसरी ओर 65 से 75 किलोग्राम फास्फोरस का इस्तेमाल करें। 

40 से 60 किलोग्राम पोटाश खेतों में छोड़े, वहीं दूसरी ओर डेढ़ सौ से दो सौ क्विंटल गोबर की खाद खेतों में भली प्रकार से डालें।

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बैंगन की फसल की तुड़ाई का सही समय:

बैगन की फसल की तुड़ाई करने से पहले कुछ चीजों का खास ख्याल रखना चाहिए। सबसे पहले आपको तुड़ाई करते समय चिकनाई और उसके आकर्षण को भली प्रकार से जांच कर लेना चाहिए। 

बैगन ज्यादा पके नहीं तभी तोड़ लेनी चाहिए। इससे बैगन में ताजगी बनी रहती है और मार्केट में अच्छी कीमत पर बिकते हैं। बैगन की मांग मार्केट में बहुत ज्यादा होती है। 

बैगन के आकार को जांच परख कर ही तुड़ाई करना चाहिए। बैगन की तुड़ाई करते समय आपको इन चीजो का खास ख्याल रखना चाहिए। 

दोस्तों हम उम्मीद करते हैं आपको हमारा यह आर्टिकल बैगन की खेती पसंद आया होगा। हमारे इस आर्टिकल में बैगन की खेती से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक और महत्वपूर्ण जानकारियां मौजूद है। 

जो आपके बहुत काम आ सकती है। हमारे इस आर्टिकल से यदि आप संतुष्ट हैं। तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा सोशल मीडिया  तथा अन्य प्लेटफार्म पर शेयर करें।

निरंजन सरकुंडे का महज डेढ़ बीघे में बैंगन की खेती से बदला नसीब

निरंजन सरकुंडे का महज डेढ़ बीघे में बैंगन की खेती से बदला नसीब

किसान निरंजन सरकुंडे ने बताया है, कि उनके पास 5 एकड़ खेती करने लायक भूमि है। पहले सरकुंडे अपने खेत में पारंपरिक फसलों की खेती किया करते थे। जिससे उनको उतनी आमदनी नहीं हो पाती थी। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, झारखंड, बिहार और हरियाणा में ही किसान केवल बागवानी की ओर रुख नहीं कर रहे। इनके साथ-साथ दूसरे राज्यों में भी किसान पारंपरिक फसलों की जगह फल और सब्जियों की खेती में अधिक रुची ले रहे हैं। मुख्य बात यह है, कि सब्जियों की खेती करने से किसानों की आय में भी काफी इजाफा होगा। इससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार देखने को मिलेगा। हालांकि, पहले पारंपरिक फसलों की खेती करने पर किसानों को खर्चे की तुलना में उतना ज्यादा मुनाफा नहीं होता था। साथ ही, परिश्रम भी काफी ज्यादा करना पड़ता था। बहुत बार तो अत्यधिक बारिश अथवा सूखा पड़ने से फसल भी बर्बाद हो जाती थी। परंतु, वर्तमान में बागवानी करने से किसानों को प्रतिदिन आमदनी हो रही है। 

महाराष्ट्र के नांदेड़ निवासी किसान का चमका नसीब

वर्तमान में हम महाराष्ट्र के नांदेड़ के निवासी एक ऐसे ही किसान के संबंध में बात करेंगे, जिनकी
सब्जी की खेती से किस्मत बदल गई। इस किसान का नाम निरंजन सरकुंडे है। वह नांदेड जिला स्थित जांभाला गांव के मूल निवासी हैं। निरंजन सरकुंडे एक छोटे किसान हैं। उनके समीप काफी कम भूमि है। उन्होंने डेढ़ बीघे भूमि पर बैंगन की खेती की है। विशेष बात यह है, कि विगत तीन वर्षों से वह इस खेत में बैंगन की पैदावार कर रहे हैं, जिससे उन्हें अभी तक चार लाख रुपये की आमदनी हुई है।

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बैंगन विक्रय कर कमा चुके 3 लाख रुपये का मुनाफा

निरंजन सरकुंडे का कहना है, कि उनके समीप 5 एकड़ खेती करने लायक भूमि है। निरंजन सरकुंडे इससे पहले अपने खेत में पारंपरिक फसलों की खेती किया करते थे। परंतु, उससे उनको उतनी ज्यादा कमाई नहीं हो पाती थी। अब ऐसी स्थिति में उन्होंने सब्जी का उत्पादन करने का निर्णय लिया। उन्होंने डेढ़ बीघे भूमि में बैंगन की बिजाई कर डाली, जिससे कि उनकी अच्छी-खासी आमदनी हो रही है। वर्तमान में वह बैंगन बेचकर 3 लाख रुपये का मुनाफा कमा चुके हैं। हालांकि, वह बैंगन के साथ-साथ पांरपरिक फसलों का भी उत्पादन कर रहे हैं। 

निरंजन सरकुंडे के बैगन की बिक्री स्थानीय बाजार में ही हो जाती है

वर्तमान में निरंजन सरकुंडे पूरे गांव के लिए मिसाल बन गए हैं। वर्तमान में पड़ोसी गांव ठाकरवाड़ी के किसानों ने भी उनको देखकर सब्जी की खेती चालू कर दी है। निरंजन सरकुंडे ने बताया है, कि इस डेढ़ बीघे भूमि में बैंगन की खेती से वह तकरीबन 3 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा अर्जित कर चुके हैं। हालांकि, डेढ़ बीघे भूमि में बैंगन की खेती करने पर उनको 30 हजार रुपये का खर्चा करना पड़ता है। छोटी जोत के किसान निरंजन द्वारा पैदा किए गए बैंगन की स्थानीय बाजार में अच्छी-खासी बिक्री है। सरकुंडे ने बताया है, कि ह वह अपने खेत की सब्जियों को बाहर सप्लाई नहीं करते हैं। उनके बैगन की स्थानीय बाजार में ही काफी अच्छी बिक्री हो जाती है।

किसान निरंजन सरकुंडे ने ड्रिप सिंचाई के माध्यम से बैगन की खेती कर कमाए लाखों

किसान निरंजन सरकुंडे ने ड्रिप सिंचाई के माध्यम से बैगन की खेती कर कमाए लाखों

जैसा कि हम सब जानते हैं कि बैंगन एक ऐसी सब्जी है जिसकी हमेशा मांग बनी रहती है। इसका भाव सदैव 40 से 50 रुपये किलो के समीप रहता है। एक बीघे भूमि में बैंगन का उत्पादन करने पर 20 हजार रुपये के आसपास लागत आएगी। दरअसल, लोगों का मानना है कि नकदी फसलों की खेती में उतना ज्यादा मुनाफा नहीं है। विशेष रूप से हरी सब्जियों के ऊपर मौसम की मार सबसे ज्यादा पड़ती है। वह इसलिए कि हरी सब्जियां सामान्य से अधिक बारिश, गर्मी एवं ठंड सहन नहीं कर पाती हैं। इस वजह से ज्यादा लू बहने, पाला पड़ने एवं अत्यधिक बारिश होने पर बागवानी फसलों को सबसे ज्यादा क्षति पहुंचती है। हालाँकि, बेहतर योजना और आधुनिक ढ़ंग से सब्जियां उगाई जाए, तो इससे ज्यादा मुनाफा किसी दूसरी फसल की खेती के अंदर नहीं हैं। यही कारण है, कि अब महाराष्ट्र में किसान पारंपरिक फसलों के स्थान पर सब्जियों की खेती में अधिक परिश्रम कर रहे हैं।

किसान निरंजन को कितने लाख की आय अर्जित हुई है

आज हम आपको एक ऐसे किसान के विषय में जानकारी देंगे, जिन्होंने सफलता की नवीन कहानी रची है। बतादें, कि इस किसान का नाम निरंजन सरकुंडे है और यह महाराष्ट्र के नांदेड जनपद के मूल निवासी हैं। सरकुंडे हदगांव तालुका मौजूद निज गांव जांभाला में पहले पारंपरिक फसलों की खेती किया करते थे। परंतु, वर्तमान में वह बैंगन की खेती कर रहे हैं, जिससे उनको काफी अच्छी आमदनी हो रही है। मुख्य बात यह है, कि निरंजन सरकुंडे ने केवल डेढ़ बीघा भूमि में ही बैंगन लगाया है। इससे उन्हें चार लाख रुपये की आय अर्जित हुई है।

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निरंजन को देख अन्य पड़ोसी गांव के किसान भी खेती करने लगे

निरंजन का कहना है, कि उनके समीप 5 एकड़ जमीन है, जिस पर वह पूर्व में पारंपरिक फसलों की खेती किया करते थे। परंतु, इससे उनके घर का खर्चा नहीं चल रहा था। ऐसे में उन्होंने डेढ़ बीघे खेत में बैंगन की खेती चालू कर दी। इसके पश्चात उनकी तकदीर बदल गई। वह प्रतिदिन बैंगन बेचकर मोटी आमदनी करने लगे। उनको देख प्रेरित होकर उनके पड़ोसी गांव ठाकरवाड़ी के किसानों ने भी सब्जी का उत्पादन कर दिया। वर्तमान मे सभी किसान सब्जी की पैदावार कर बेहतरीन आमदनी कर रहे हैं।

निरंजन सरकुंडे ड्रिप इरिगेशन विधि से फसलों की सिंचाई करते हैं

सरकुंड के गांव में सिंचाई हेतु पानी की काफी किल्लत है। इस वजह से वह ड्रिप इरिगेशन विधि से फसलों की सिंचाई करते हैं। उन्होंने बताया है, कि रोपाई करने के दो माह के उपरांत बैंगन की पैदावार हो जाती है। वह उमरखेड़ एवं भोकर के समीपवर्ती बाजारों में बैंगन को बेचा करते हैं। इस डेढ़ बीघे भूमि में बैंगन की खेती से निरंजन सरकुंडे को तकरीबन 3 लाख रुपये का शुद्ध लाभ प्राप्त हुआ है। वहीं, डेढ़ बीघे भूमि में बैंगन की खेती करने पर 30 हजार रुपये की लागत आई थी। उनकी मानें तो फिलहाल वह धीरे- धीरे बैंगन का रकबा बढ़ाएंगे। पारंपरिक खेती की बजाए आधुनिक ढ़ंग से बागवानी फसलों का उत्पादन करना काफी फायदेमंद है।
किसान अपनी छत पर इन महंगी सब्जियों को इस माध्यम से उगाऐं

किसान अपनी छत पर इन महंगी सब्जियों को इस माध्यम से उगाऐं

शिमला मिर्च की खेती भी बिल्कुल उसी तरह कर सकते हैं, जैसे बैंगन की करते हैं। हालांकि, इसमें धूप का और पानी का खास ध्यान रखना पड़ता है। प्रयास करें कि शिमला मिर्च के पौधों पर प्रत्यक्ष तौर पर धूप ना पड़े। बाजार में कुछ दिन पूर्व तक टमाटर की कीमत 350 रुपए प्रतिकिलो थी। दरअसल, सरकार के हस्तक्षेप के उपरांत इनके भाव अब 70 से 80 रुपए किलो तक आ गए हैं। परंतु, क्या आपको जानकारी है, कि बाजार के अंदर विभिन्न ऐसी सब्जियां हैं, जो आज भी 150 के पार चल रही हैं। इन सब्जियों में शिमला मिर्च, बैगन और धनिया शम्मिलित हैं। आइए आपको जानकारी दे दें कि कैसे आप इन सब्जियों को अपनी छत पर सहजता से उगा सकते हैं।

गमले के अंदर बैंगन की खेती

बैंगन को छत पर उगाना सबसे सुगम होता है। बाजार में इसके पौधे मिलते हैं, जिन्हें लाकर आप किसी भी गमले में इसको उगा सकते हैं। इसकी संपूर्ण प्रक्रिया के विषय में बात की जाए तो सबसे पहले आपको एक गमला लेना पड़ेगा। जो थोड़ा बड़ा हो उसके बाद उसमें मिट्टी और जैविक खाद मिला लें। जब इस प्रकार से गमला तैयार हो जाए तो नर्सरी से लाए हुए बैंगन के पौधों की इनमें रोपाई करें। एक गमले में आपको एक से ज्यादा पौधा नहीं रोपना चाहिए। ऐसे करके आप छत पर पांच से सात गमलों में बैंगन का उत्पादन कर सकते हैं। ये पौधे दो महीनों के अंतर्गत बैंगन देने लगेंगे। ये भी पढ़े: सफेद बैंगन की खेती से किसानों को अच्छा-खासा मुनाफा मिलता है

गमले के अंदर शिमला मिर्च की खेती

शिमला मिर्च की खेती भी बिल्कुल वैसे ही की जा सकती है, जैसे कि बैंगन की करते हैं। हालांकि, इसमें धूप का और पानी का विशेष ख्याल रखना पड़ता है। प्रयास करें कि शिमला मिर्च के पौधों पर प्रत्यक्ष तौर पर धूप ना पड़े। यदि ऐसा हुआ तो पौधा सूख सकता है। इसी प्रकार से आप हरी मिर्च की भी खेती सहजता से कर सकते हैं। यदि आपका छत बड़ा है, तो आप उस पर बहुत सारे गमले रख के एक छोटा सा वेजिटेबल गार्डेन तैयार कर सकते हैं, जिसमें आप प्रतिदिन बगैर रसायन वाली ताजी-ताजी सब्जियां उगा सकते हैं।

गमले के अंदर धनिया की खेती

संभवतः धनिया की खेती सबसे आसान ढ़ंग से की जाती है। हालांकि, इसके लिए आपको गमला नहीं बल्कि कोई चौड़ी वस्तु जैसे कोई बड़ा सा गहरा ट्रे लेना पड़ेगा। इस ट्रे में पहले आप जैविक खाद और मृदा डाल दें, उसके उपरांत इसमें बाजार से लाए धनिया के बीज छींट दें। फिर उसमें पानी का मध्यम छिड़काव कर दें। दस से बीस दिनों के समयांतराल पर धनिया के पौधे तैयार हो जाएंगे, एक महीने के पश्चात आप इनकी पत्तियों का इस्तेमाल कर पाएंगे।
परती खेत में करें इन सब्जियों की बुवाई, होगी अच्छी कमाई

परती खेत में करें इन सब्जियों की बुवाई, होगी अच्छी कमाई

सितंबर महीने में अपने परती पड़े खेत में करें इन फली या सब्जियों की बुवाई

भारत के खेतों में मानसून की शुरुआत में बोयी गयी
खरीफ की फसलों को अक्टूबर महीने की शुरुआत में काटना शुरू कर दिया जाता है, पर यदि किसी कारणवश आपने खरीफ की फसल की बुवाई नहीं की है और जुलाई या अगस्त महीने के बीत जाने के बाद सितंबर में किसी फसल के उत्पादन के बारे में सोच रहे हैं, तो आप कुछ फसलों का उत्पादन कर सकते है, जिन्हें मुख्यतः सब्जी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

मानसून में बदलाव :

सितंबर महीने के पहले या दूसरे सप्ताह में भारत के लगभग सभी हिस्सों से मानसून लौटना शुरू हो जाता है और इसके बाद मौसम ज्यादा गर्म भी नहीं रहता और ना ही ज्यादा ठंडा रहता है। इस मौसम में किसी भी सीमित पानी की आवश्यकता वाली फसल की पौध को वृद्धि करने के लिए एक बहुत ही अच्छी जलवायु मिल सकती है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में इस्तेमाल आने वाली सब्जियों की बुवाई मुख्यतः अगस्त महीने के अंतिम सप्ताह या फिर सितंबर में की जाती है।

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भारत मौसम विज्ञान विभाग ने दी किसानों को सलाह, कैसे करें मानसून में फसलों और जानवरों की देखभाल कृषि क्षेत्र से जुड़ी इसी संस्थान की एडवाइजरी के अनुसार, भारत के किसान नीचे बताइए गई किसी भी फली या सब्जियों का उत्पादन कर सितंबर महीने में भी अपने परती पड़े खेत से अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
  • मटर की खेती

 15 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में के साथ 400 मिलीमीटर की बारिश में तैयार होने वाली यह सब्जी दोमट और बलुई दोमट मिट्टी में उगाई जा सकती है। मानसून के समय अच्छी तरीके से पानी मिली हुई मिट्टी इसके उत्पादन को काफी बढ़ा सकती है।अपने खेत में दो से तीन बार जुताई करने के बाद इसके बीज को जमीन से 2 से 3 सेंटीमीटर के अंदर दबाकर उगाया जा सकता है।
मटर की खेती से संबंधित पूरी जानकारी और बीमारियों से इलाज के लिए यह भी देखें : जानिए मटर की बुआई और देखभाल कैसे करें
  • पालक की खेती

वर्तमान में उत्तरी भारत में पालक के लगभग सभी किसानों के द्वारा हाइब्रिड यानी कि संकर बीज का इस्तेमाल किया जाता है। 40 से 50 दिन में पूरी तरह से तैयार होने वाली यह सब्जी किसी भी प्रकार की मिट्टी में आसानी से उगाई जा सकती है, हालांकि इसकी पौध लगाने से पहले किसानों को मिट्टी की अम्लता की जांच जरूर कर लेनी चाहिए। 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड के मध्य बेहतर उत्पादन देने वाली यह सब्जी पतझड़ के मौसम में सर्वाधिक वृद्धि दिखाती है। प्रति हेक्टेयर 20 से 30 किलोग्राम बीज की मात्रा से बुवाई करने के तुरंत बाद खेत की सिंचाई कर देनी चाहिए।
पालक की खेती के दौरान खेत को तैयार करने की विधि और इस फसल में लगने वाले रोगों से निदान के बारे में 
संपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए, यह भी देखें : पालक की खेती की सम्पूर्ण जानकारी
  • पत्ता गोभी की खेती

सितंबर महीने के पहले या दूसरे सप्ताह में शुरुआत में नर्सरी में पौध उगाकर 20 से 40 दिन में खेत में पौध को स्थानांतरित कर उगायी जा सकने वाली यह सब्जी भारत में लगभग पूरे वर्ष भर इस्तेमाल की जाती है। 70 से 80 दिनों के अंतर्गत पूरी तरह तैयार होने वाली यह फसल पोषक तत्वों से भरपूर और अच्छी सिंचाई वाली मिट्टी में आसानी से बेहतरीन उत्पादकता प्रदान कर सकती है। ड्रिप सिंचाई विधि तथा उर्वरकों के सीमित इस्तेमाल से इस फसल की पत्तियों की ग्रोथ काफी तेजी से बढ़ती है। 15 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में तैयार होने वाली यह सब्जी की फसल जब तक कुछ पत्तियां नहीं निकालती है, अच्छी मात्रा में पानी की मांग करती है। इस फसल की खास बात यह है कि इससे बहुत ही कम जगह में अधिक पैदावार की जा सकती है, क्योंकि इसके दो पौध के मध्य की दूरी 30 सेंटीमीटर तक रखनी होती है, इस वजह से एक हेक्टेयर में लगभग 20 हज़ार से 40 हज़ार छोटी पौध लगायी जा सकती है।
पत्ता गोभी फसल तैयार करने की संपूर्ण जानकारी और इसकी वृद्धि के दौरान होने वाले रोगों के निदान के लिए,
यह भी देखें : पत्ता गोभी की खेती की सम्पूर्ण जानकारी
  • बैंगन की खेती

भारत में अलग-अलग नामों से उगाई जाने वाली यह सब्जी 15 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान के मध्य अच्छी उत्पादकता प्रदान करती है। हालांकि, इस सब्जी की खेती खरीफ और रबी की फसल के अलावा पतझड़ के समय भी की जाती है। अलग-अलग प्रकार की मिट्टी में उगने वाली यह फसल अम्लीय मिट्टी में सर्वाधिक प्रभावी साबित होती है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसार एक हेक्टेयर क्षेत्र में बैंगन उत्पादित करने के लिए लगभग 400 से 500 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। इन बीजों को पहले नर्सरी में तैयार किया जाता है और उसके बाद खेत को अच्छी तरीके से तैयार कर 50 सेंटीमीटर की दूरी रखते हुए बुवाई जाती है। ऑर्गेनिक खाद और रासायनिक उर्वरकों के सीमित इस्तेमाल से 8 से 10 दिन के अंतराल पर बेहतरीन सिंचाई की मदद से भारत के किसान काफी मुनाफा कमा रहे है।
बैंगन की फसल से जुड़ी हुई अलग-अलग किस्म और वैज्ञानिकों के द्वारा जारी की गई नई विधियों की संपूर्ण जानकारी के लिए, 
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  • मूली की खेती

सितंबर से लेकर अक्टूबर के महीनों में उगाई जाने वाली यह सब्जी बहुत ही जल्दी तैयार हो सकती है। पिछले कुछ समय में बाजार में बढ़ती मांग की वजह से इस फसल का उत्पादन करने वाले किसान काफी अच्छा मुनाफा कमा रहे है। 15 से 20 सेंटीग्रेड के तापमान में अच्छी उत्पादकता देने वाली यह फसल उपजाऊ बलुई दोमट मिट्टी में अपनी अलग-अलग किस्मों के अनुसार प्रभावी साबित होती है। किसान भाई कृषि विज्ञान केंद्र से अपनी खेत की मिट्टी की अम्लीयत या क्षारीयता की जांच अवश्य कराएं, क्योंकि इस फसल के उत्पादन के लिए खेत की पीएच लगभग 6.5 से 7.5 के मध्य होनी चाहिए। सितंबर के महीने में अच्छी तरीके से खेत को तैयार करने के बाद गोबर की खाद का इस्तेमाल कर, 10 से 12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीज की बुवाई करते हुए उचित सिंचाई प्रबंधन के साथ अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
मूली की फसल में लगने वाले कई प्रकार के रोग और इसकी अलग-अलग किस्मों की जलवायु के साथ उत्पादकता का पता लगाने के लिए, 
यह भी देखें : मूली की खेती (Radish cultivation in hindi)
  • लहसुन की खेती

ऊटी 1 और सिंगापुर रेड तथा मद्रासी नाम की अलग-अलग किस्म के साथ उगाई जाने वाली लहसुन की फसल लगभग 12 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में बोयी जाती है। पोषक तत्वों से भरपूर और अच्छी तरह से सिंचाई की हुई मिट्टी इस फसल की उत्पादकता के लिए सर्वश्रेष्ठ साबित होती है। प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में 500 से 600 किलोग्राम बीज के साथ उगाई जाने वाली यह खेती कई प्रकार के रोगों के खिलाफ स्वतः ही कीटाणुनाशक की तरह बर्ताव कर सकती है। बलुई और दोमट मिट्टी में प्रभावी साबित होने वाली यह फसल भारत में आंध्र प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश के अलावा गुजरात राज्य में उगाई जाती है। वर्तमान में भारतीय किसानों के द्वारा लहसुन की गोदावरी और श्वेता किस्मों को काफी पसंद किया जा रहा है। इस फसल का उत्पादन जुताई और बिना जुताई वाले खेतों में किया जा सकता है। पहाड़ी क्षेत्र वाले इलाकों में सितंबर के महीने को लहसुन की बुवाई के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, जबकि समतल मैदानों में इसकी बुवाई अक्टूबर और नवंबर महीने में की जाती है।
लहसुन की फसल से जुड़ी हुई अलग-अलग किस्म और जलवायु के साथ उनकी प्रभावी उत्पादकता को जानने के अलावा,
इस फसल में लगने वाले रोगों के निदान के लिए यह भी देखें : लहसुन को कीट रोगों से बचाएं
भारत के किसान भाई इस फसल के बारे में कम ही जानकारी रखते है, परंतु अरुगुला (Arugula) सब्जी से होने वाली उत्पादकता से कम समय में काफी अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। इसे भारत में गारगीर (Gargeer) के नाम से जाना जाता है।यह एक तरीके से पालक के जैसे ही दिखने वाली सब्जी की फसल होती है जो कि कई प्रकार के विटामिन की कमी को दूर कर सकती है। पिछले कुछ समय से उत्तरी भारत के कुछ राज्यों में इस सब्जी की डिमांड बढ़ने की वजह से कई युवा किसान इसका उत्पादन कर रहे है। सितंबर महीने के दूसरे सप्ताह में बोई जाने वाली यह सब्जी वैसे तो किसी भी प्रकार की मिट्टी में अच्छा उत्पादन दे सकती है, परंतु यदि मिट्टी की ph 7 से अधिक हो तो यह अधिक प्रभावी साबित होती है। पानी के सीमित इस्तेमाल और जैविक खाद की मदद से इस फसल की वृद्धि दर को काफी तेजी से बढ़ाया जा सकता है। इस सब्जी की फसल की छोटी पौध 7 से 10 दिन में अंकुरित होना शुरू हो जाती है। बहुत ही कम खर्चे पर तैयार होने वाली यह फसल 30 दिन में पूरी तरीके से तैयार हो सकती है। दक्षिण भारत के राज्यों में इसकी बुवाई सितंबर महीने के दूसरे सप्ताह में शुरू हो जाती है, जबकि उत्तरी भारत में यह अक्टूबर महीने के पहले सप्ताह में बोयी जाती है। इस फसल के उत्पादन में बहुत ही कम सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है परंतु फिर भी नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम के सीमित इस्तेमाल से उत्पादकता को 50% तक बढ़ाया जा सकता है।


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आशा करते हैं कि Merikheti.com के द्वारा किसान भाइयों को सितंबर महीने में बुवाई कर उत्पादित की जा सकने वाली फसलों के बारे में दी गई यह जानकारी पसंद आई होगी और यदि आप भी किसी कारणवश खरीफ की फसल का उत्पादन नहीं कर पाए है तो खाली पड़ी हुई जमीन में इन सब्जी की फसलों का उत्पादन कर कम समय में अच्छा मुनाफा कमा सकेंगे।
दिसंबर महीने में बोई जाने वाली इन सब्जियों से होगी बंपर कमाई, जाने कैसे।

दिसंबर महीने में बोई जाने वाली इन सब्जियों से होगी बंपर कमाई, जाने कैसे।

सर्दी का आगमन हो चुका है और इस व्यस्त मौसम के लिए किसानों के पास अपने खेत को तैयार करने का यह सही समय है। कई लोगों के लिए यह समय छुट्टियां मनाने और अपने प्रिय जनों के साथ समय बिताने का समय होता है, लेकिन किसानों के लिए सर्दी के इस मौसम में भी पूर्णमूल्यांकन और तैयारी करने का समय माना जाता है। दिसंबर के इस महीने को सब्जियों की खेती के लिए सबसे अनुकूल माना जाता है। मिट्टी में नमी और सर्द वातावरण के बीच किसान मूली, टमाटर, पालक, गोभी और बैगन की खेती कर अच्छे प्रोडक्शन के साथ बढ़िया मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। वैसे तो नई तकनीकों के कारण ऑफ सीजन में भी खेती करना आसान हो गया है, लेकिन प्राकृतिक वातावरण में उगने वाली सब्जियों की बात ही कुछ अलग होती है।


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यदि आप सोचते हैं, कि ज्यादातर स्वादिष्ट सब्जी गर्मियों के दौरान उगाई जाती हैं। जब आप के बगीचे में सब कुछ खिला हुआ होता है, तो आप गलत हैं। सर्दी अपने साथ स्वादिष्ट हरी सब्जियों की भरमार लेकर आती है, जिन्हें आप अपने बगीचे में काफी आसानी से उगा सकते हैं। इस मौसम में उगने वाली सब्जियां न केवल स्वाद में अच्छी होती हैं, बल्कि पोषण प्रदान करने के अलावा कई तरह से फायदेमंद भी होती हैं। सब्जी की खेती निश्चित रूप से एक लाभदायक व्यापार है और यह सिर्फ बड़े किसानों के लिए नहीं है। यह छोटे और सीमांत किसानों के लिए भी लाभदायक है। एक छोटे पैमाने के सब्जी के खेत में सालभर कमाई की संभावना होती है। खुले आसमान में खेती के अलावा आप ग्रीन हाउस में भी इस सीजन में सब्जियां उगा सकते हैं। किसान अगर कुछ खास बातों का ध्यान रखकर के सीजनल सब्जियों की खेती करें तो अच्छी उत्पादकता के साथ-साथ बढ़िया मुनाफा आराम से हासिल कर सकता है। दिसंबर के महीने में बोई जाने वाली जिन सब्जियों की जानकारी हम आपको देने जा रहे हैं, उससे आपको कई गुना फायदा मिलेगा।

फूलगोभी की खेती

फूलगोभी सर्दियों की सबसे महत्वपूर्ण और लोकप्रिय सब्जियों में से एक है और यह भारतीय कृषि में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सर्दियों के इस मौसम में गोभी वर्गीय सब्जियां जैसे फूलगोभी ब्रोकली पत्ता गोभी की खेती करना बहुत ही आसान होता है। क्योंकि इन दिनों मिट्टी में नमी और वातावरण में सर्दी होती है, जिससे नेचुरल प्रोडक्शन लेने में मदद मिलती है। किसान चाहे तो गोभी की खेती ग्रीन हाउस में भी कर सकते हैं, एक्सपर्ट की बात करें तो 75 से 80 क्विंटल प्रति एकड़ तक का उत्पादन सर्दियों के मौसम में गोभी का होता है। जिसे आप आसानी से इस मौसम में उगा कर और नजदीकी बाजार में बेचकर बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं।


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बैगन की खेती

बैगन की खेती करने के लिए भी यह महीना बड़ा ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इन दिनों किसान बैगन की खेती करके लाखों रुपए कमाते हैं, बैगन की सब्जी भारतीय जन समुदाय में बहुत प्रसिद्ध है। विश्व में सबसे ज्यादा बैगन चीन में उगाया जाता है, बैगन उगाने के मामले में भारत का दूसरा स्थान है। बैगन विटामिन और खनिजों का भी अच्छा स्रोत है। वैसे तो इसकी खेती पूरे साल की जाती है, लेकिन इस मौसम में बैगन की खेती करना किसानों के लिए आसान होता है। क्योंकि मिट्टी में नमी के कारण और मौसम में ठंड के कारण किसानों को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती है। एक्सपर्ट की राय की बात करें, तो एक हेक्टेयर में करीब साड़े 400 से 500 ग्राम बीज डालने पर लगभग 300 से 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक का बैगन का उत्पादन आसानी से मिल जाता है।

टमाटर की खेती

टमाटर विश्व में सबसे ज्यादा प्रयोग होने वाली सब्जी है। भारतीय पकवानों में टमाटर का अपना एक विशेष स्थान है। इसे सब्जी बनाने से लेकर सलाद सूप चटनी और ब्यूटी प्रोडक्ट के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। इसकी खेती भारत में बड़े पैमाने पर होती है कई किसान टमाटर की खेती कर बढ़िया मुनाफा कमा रहे हैं अगर आप एक हेक्टेयर में भी टमाटर की खेती करते हैं तो आप 800 से 1200 क्विंटल तक का उत्पादन कर सकते है। ज्यादा पैदावार पैदावार के कारण किसानों को लागत से ज्यादा मुनाफा होता है। एक्सपर्ट की राय की बात करें तो अगर आप एक हेक्टेयर में टमाटर की खेती करते हैं तो आपको लगभग 15लाख रुपए तक की कमाई होगी।


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गाजर-मूली की खेती

मूली और गाजर भारत के लगभग हर क्षेत्र में उगाए जाते हैं, इनका उपयोग सब्जियों के अलावा अचार और मिठाई बनाने के लिए भी किया जाता है। सर्दी के मौसम में इनकी डिमांड बहुत ज्यादा होती है। इसकी खेती करके लागत बहुत ही कम लगती है, अगर वही हम बात कमाई की करें, तो किसान गाजर और मूली को 1 हेक्टेयर में लगभग 150 क्विंटल तक का उत्पादन कर सकते है। विशेष तौर पर सर्दी का मौसम है, गाजर और मूली की खेती करने के लिए उपयुक्त माना जाता है। गर्मी के मौसम में अगर आप गाजर और मूली को उपजाना चाहते हैं, तो आपको भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। तो किसान इस तरह की सब्जियों की खेती इस सर्दी के मौसम में करके बंपर पैदावार के साथ बंपर कमाई आसानी से अर्जित कर सकते है।
सफेद बैंगन की खेती से किसानों को अच्छा-खासा मुनाफा मिलता है

सफेद बैंगन की खेती से किसानों को अच्छा-खासा मुनाफा मिलता है

अगर आप सफेद बैंगन की बिजाई करते हैं, तो इसके तुरंत उपरांत फसल में सिंचाई का कार्य कर देना चाहिए। इसकी खेती के लिये अधिक जल की जरुरत नहीं पड़ती। जैसा कि हम सब जानते हैं, कि प्रत्येक क्षेत्र में लोग लाभ उठाने वाला कार्य कर रहे हैं। 

उसी प्रकार खेती-किसानी के क्षेत्र में भी वर्तमान में किसान ऐसी फसलों का पैदावार कर रहे हैं। जिन फसलों की बाजार में मांग अधिक हो और जो उन्हें उनके खर्चा की तुलना में अच्छा मुनाफा प्रदान कर सकें। 

सफेद बैंगन भी ऐसी ही एक सब्जी है, जिसमें किसानों को मोटा मुनाफा अर्जित हो रहा है। काले बैंगन की तुलनात्मक इस बैंगन की पैदावार भी अधिक होती है। 

साथ ही, बाजार में इसका भाव भी काफी अधिक मिल पाता है। सबसे मुख्य बात यह है, कि बैंगन की यह प्रजाति प्राकृतिक नहीं है। इसे कृषि वैज्ञानिकों ने अनुसंधान के माध्यम से विकसित किया है।

बैंगन की खेती कब और कैसे होती है

सामान्यतः सफेद बैंगन की खेती ठण्ड के दिनों में होती है। परंतु, आजकल इसे टेक्नोलॉजी द्वारा गर्मियों में भी उगाया जाता है। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा सफेद बैंगन की दो किस्में- पूसा सफेद बैंगन-1 और पूसा हरा बैंगन-1 को विकसित किया है। 

सफेद बैंगन की यह किस्में परंपरागत बैंगन की फसल की तुलना में अतिशीघ्र पककर तैयार हो जाती है। बतादें, कि इसका उत्पादन करने हेतु सबसे पहले इसके बीजों को ग्रीनहाउस में संरक्षित हॉटबेड़ में दबाकर रखा जाता है। 

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साथ ही, इसके उपरांत इसकी बिजाई से पूर्व बीजों का बीजोपचार करना पड़ता है। ऐसा करने से फसल में बीमारियों की आशंका समाप्त हो जाती है। 

बीजों के अंकुरण तक बीजों को जल एवं खाद के माध्यम से पोषण दिया जाता है और पौधा तैयार होने के उपरांत सफेद बैंगन की बिजाई कर दी जाती है। यदि अत्यधिक पैदावार चाहिए तो सफेद बैंगन की बिजाई सदैव पंक्तियों में ही करनी चाहिए।

सफेद बैंगन की खेती बड़ी सहजता से कर सकते हैं

जानकारी के लिए बतादें कि सफेद बैंगन की रोपाई यदि आप करते हैं, तो इसके शीघ्र उपरांत फसल में सिंचाई का कार्य कर देना चाहिए। इसकी खेती के लिये अत्यधिक जल की आवश्यकता नहीं पड़ती है। 

यही कारण है, कि टपक सिंचाई विधि के माध्यम से इसकी खेती के लिए जल की जरूरत बड़े आराम से पूरी हो सकती है। हालांकि, मृदा में नमी को स्थाई रखने के लिये वक्त-वक्त पर आप सिंचाई करते रहें। 

सफेद बैंगन की पैदावार को बढ़ाने के लिए जैविक खाद अथवा जीवामृत का इस्तेमाल करना अच्छा होता है। जानकारी के लिए बतादें, कि इससे बेहतरीन पैदावार मिलने में बेहद सहयोग मिल जाता है। 

इस फसल को कीड़े एवं रोगों से बचाने के लिये नीम से निर्मित जैविक कीटनाशक का इस्तेमाल अवश्य करना चाहिए। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि बैंगन की फसल 70-90 दिन के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती है।

Brinjal Farming: बैंगन की खेती के बारे में संपूर्ण जानकारी

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कृषक भाई बैंगन का उत्पादन करके काफी शानदार मुनाफा उठा सकते हैं। इसके लिए उनको कुछ विशेष बातों का ख्याल अवश्य रखना पड़ेगा। बैंगन में लौह, कैल्शियम, फास्फोरस और विटामिन ए-बी-सी भी होते हैं। बैंगन की मुख्य तौर पर सब्जी के लिए खेती की जाती है। बतादें कि इन उन्नत वैज्ञानिक क्रियाओं के साथ फसल की जाती है, तो बेहतर उत्पादन मिलता है। किसान इससे काफी अच्छा लाभ कमाते हैं। बैंगन का एक वर्ष में तीन बार सेवन किया जा सकता है। नर्सरी तैयार करने के लिए जून-जुलाई एवं रोपाई के लिए जुलाई-अगस्त बिल्कुल उपयुक्त महीने हैं। बैंगन की फसल को समुचित जल निकासी एवं बलुई दोमट मृदा चाहिए।

बैंगन का खेत तैयार करना

खेत की प्रथम जुताई मृदा पलटने वाले हल से करनी चाहिए। उसके पश्चात 3-4 बार हैरो अथवा देशी हल चलाकर पाटा लगाएं। रोपाई से दस से पंद्रह दिन पूर्व खेत में सड़ी हुई गोबर की खाद मिश्रित करनी चाहिए। प्रति हेक्टेयर 120 ग्राम नत्रजन, 60 ग्राम फास्फोरस एवं 80 ग्राम पोटाश मिलाकर आखिरी जुताई में आधी नत्रजन, पूरी फास्फोरस एवं पोटाश मिलानी चाहिए।

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बैंगन उत्पादन के लिए नर्सरी बनाना अत्यंत आवश्यक

बतादें, कि एक हेक्टेयर बैंगन की फसल के लिए 400-500 ग्राम बीज और संकर प्रजातियों का 300 ग्राम बीज उपयुक्त माना जाता है। बुवाई से पूर्व बीज का ट्राइकोडरमा से उपचार करें। जहां नर्सरी तैयार है, उस जगह बेहतर ढ़ंग से खुदाई करें। खरपतवारों को निकालकर सड़ी हुई गोबर की खाद को डालनी चाहिए, ताकि जिससे जमीन में जीवांश पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहें। 8 से 10 ग्राम ट्राइकोडमर प्रति वर्ग मीटर में मिलाकर भूमि जनित रोगों को मार डालें। 15 से 20 क्यारियां (एक मीटर चौड़ी और तीन मीटर लंबी) पौध तैयार करने के लिए निर्मित की गईं। बीज को पांच सेमी के फासले पर एक सेमी की गहराई पर पंक्तिबद्ध तरीके से बुवाई करें।

बैंगन की तुड़ाई तथा उत्पत्ति

फल को उस वक्त तोड़ना चाहिए जब वह पूर्ण आकार और रंग प्राप्त कर लें। बैंगन की पैदावार मौसम एवं प्रजाति पर निर्भर करती है। दरअसल, 250-500 कुंतल प्रति हेक्टेयर का औसत उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

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बैंगन का रोपण

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि 12-15 सेमी लंबी चार पत्तियों वाली पौध रोपाई के लिए उपयुक्त मानी जाती है। साथ ही, शाम के समय रोपाई करनी चाहिए। पौधे से 60 गुणा 60 सेमी का फासला रखना चाहिए। रोपाई करने के पश्चात हल्की बारिश करें। फसल की प्रत्येक 12-15 दिन में सिंचाई करते रहनी चाहिए। फसल की समाप्ति से पूर्व निराई-गुड़ाई करनी चाहिए।
जानें इंफोसिस की नौकरी छोड़ खेती करने वाले किसान के बारे में

जानें इंफोसिस की नौकरी छोड़ खेती करने वाले किसान के बारे में

आज हम आपको इस लेख में बताने जा रहे हैं, कि किसान वेंकटसामी विग्नेश को पूर्व से ही खेती का कोई अनुभव नहीं था। इस वजह से घर वालों ने उनके नौकरी छोड़ने के फैसले का विरोध किया था। प्राइवेट सेक्टर में नौकरी करने वाले प्रत्येक व्यक्ति की तमन्ना रहती है, कि एक दिन उसको भी नामचीन आईटी कंपनी इंफोसिस में कार्य करने का अवसर मिले। हालाँकि, आज हम आपको ऐसे व्यक्ति से मिलवाने जा रहे हैं, जिसने खेती करने के लिए इंफोसिस की नौकरी को त्याग दिया। दरअसल, उनके इस कदम से नाखुश परिजनों ने उनका खुलकर विरोध किया। इसके बावजूद भी वह अपने निर्णय पर अड़े रहे और जापान पहुँच कर बैगन की खेती चालू कर दी। न्यूज 18 हिन्दी की खबरों के अनुसार, इस व्यक्ति का नाम वेंकटसामी विग्नेश है जो कि तमिलनाडु के थूथुकुडी जनपद स्थित कोविलपट्टी के निवासी हैं। उनका जन्म एक किसान परिवार में हुआ है, इस वजह से उनका लगाव बचपन से ही खेती के प्रति अधिक रहा था। परंतु, इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूर्ण करने के उपरांत उनकी इंफोसिस जैसी दिग्गज कंपनी में नौकरी लग गई। जहां उनका वेतन भी काफी अच्छा-खासा था। इसके चलते साल 2020 में लॉकडाउन लगने के उपरांत वह घर वापिस आ गए। घर आने के उपरांत उन्होंने इंफोसिस की नौकरी छोड़ दी एवं खेती करने का निर्णय लिया।

कम जमीन से भी ज्यादा पैदावार कैसे मिलती है

मुख्य बात यह है, कि वेंकटसामी विग्नेश को पूर्व से ही खेती का कोई अनुभव नहीं था। इस वजह से घर वालों ने भी नौकरी छोड़ने पर उनका खूब विरोध किया था। हालाँकि, वह किसी की कोई बात नहीं माने और नौकरी त्याग कर खेती करने के लिए जापान चले गए। वह जापान में आधुनिक तकनीक से बैगन की खेती कर रहे हैं। साथ ही, उनको बैगन की खेती से मोटी आमदनी भी हो रही है, इससे उनके परिवार वाले भी अब प्रशन्न हैं। विग्नेश के मुताबिक, जापान में खेती लायक जमीन काफी कम है। इस वजह से यहां पर किसान वैज्ञानिक विधि से खेती किया करते हैं। यही कारण है, जो वहां कम जमीन में भी अत्यधिक उत्पादन प्राप्त होता है।

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जापान में भारत की तुलना में खेती करना बेहद आसान है

आपकी जानकारी के लिए बतादें कि वेंकटसामी विग्नेश जापान में जिस स्थान पर कृषि कर रहे हैं, वहां उनको निःशुल्क रहने की व्यवस्था मुहैय्या कराई गई है। उन्होंने बताया है, कि जितनी धनराशि वह नौकरी के माध्यम से कमाते थे, फिलहाल उससे दोगुना आमदनी वह करते हैं। बतादें, कि विग्नेश जापान में फसल की देखरेख करने का कार्य करते हैं। साथ ही, फसल कटाई के उपरांत प्रोसेसिंग एवं पैकेजिंग का कार्य भी वे देखते हैं। विग्नेश के बताने के अनुसार, जापान में खेती-किसानी करना भारत की तुलना में काफी ज्यादा आसान होता है। यदि भारत में भी किसान जापान की भांति ही तकनीकी आधारित खेती करते हैं, तो उनकी आमदनी बढ़ जाएगी। इसके लिए सरकार को पहल करने की अत्यंत आवश्यकता है।